Padm Singh पद्म सिंह 8:56 am on October 21, 2011 Tags: हास्य ( 8 ) ओ मेरे चरण दास (जस्ट खुराफात) ओ मेरे चरण दास…! सुनो मेरी अरदास …कम लिखे को ज्यादा समझना, खर्चा जो भेजा था आधा समझना… कई दिन से तुम् दिलो– दिमाग में रह गए हो फंस के, मन में याद बन के ऐसे कसके, जैसे ऊँगली में घुसी फांस, जैसे दमे की सांस, जैसे टी बी की खांसी पुरानी,….. ओ मेरे पश्चानुगामी … अब तो जिंदगी लग रही है बेमानी …. तुमारी आस में महाजन से कितना कर्जा कर चुकी हूँ, काम धंधा छोड़ दिया है, कितना हर्जा कर चुकी हूँ… न अंटी में दाम…! न रात को चैन न दिन को आराम.. तुम्ही कहो कैसे पड़े चैन… कैसे रहूँ खुश ओ मेरे कामी पुरुष!.…… काम में इतना मगन….? क्या झूठी थी मुझसे तुम्हारी लगन…. तुम्हें भी अकेलापन कैसे भाता होगा, क्या तुम्हें मेरे चेहरे की झाइयां और जुल्फों का घोसला याद न आता होगा… तुम्हारी याद मुझे अंदर तक हिला देती है, मन कसैला, जैसे कच्ची ताड़ी पिला देती है… ये देस ये समाज मेरे दिल को तार तार करता है,… रात बेचैन दिन अनमना रहता है रोम रोम में उठती है सुरसुरी ……. ओ मेरे नयनों की किरकिरी...! तुझे तहे–तिल्ली से याद करती है तुम्हारी सिरफिरी…. हर पल मेरे नयनों में ही करकते हो … एक–एल पल सीने में कसकते हो… क्या तुम अपने सारे खेल–खिलंदड भूल गए? या किसी सौतन की गलबहियां झूल गए… जरा याद करो न… वो गिल्ली वो डंडा, वो चकरी वो गोट, कभी मैक्सी के पीछे, कभी पेटीकोट की ओट … आओ सम्हालो अपना माल असबाब… सगरा गाँव पढ़ने को दौड़ता है… जैसे मै हूँ कोई खुली किताब… ओ मेरे सींकिया कबाब ...कुछ तो दे दो जवाब … साज़ बिखरे पड़े हैं बजाए कौन? बर्तन को साफ़ करे, घर को सजाये कौन….? और जानेमन मेरी पीठ का एग्जिमा….??? तुम्ही कहो खुजाए कौन? …. तुम बिन तन्हाई में जीती हूँ …खून के घूँट पीती हूँ …. क्या करूं……जब भी तुम्हारी याद आती है … तुम्हारे पुराने कच्छे की तुरपन … कभी फाड़ती हूँ … कभी सीती हूँ … अब तो एक ही है मलाल, हाल तो बिगड़ ही चुका है, कब तक सम्हालूँ अपनी चाल……. ओ मेरे अकेशोज्योतिर्कापाल.….आजा और अपना कुनबा संभाल…. तुम्हारा बड़कू खनगिन का ‘खसम–खास‘ (यानी खासम खास) हो गया है… छुटकी लटक गयी … मझला पास हो गया है… और क्या बताऊँ जीवन खार हो गया है… गाय और सांड की लड़ाई में… बछिया का बंटाधार हो गया है …कभी तो लगता है कि जान…..कि अब तो जान गई .. ओ मेरे तिर्यकनेत्रद्वयी – …. इतनी देर काहे भई ….…. कब तक करूँ तुम्हरे नाम का जाप … तुम्हारा दारू से आरक्त और मदमस्त चेहरा भूले नहीं भूलता है… और मन है कि तुम्हारी गालियों और फटकारों में ही झूलता है …. तुम्हारी मर्दानगी जब याद आती है तो दिल उठता है काँप….. जो जूता, वो चप्पल, वो गालियाँ वो झाप … तुम्हारी चाहत में टूटी खटिया पर लेटती हूँ और आँख मूँद लेती हूँ …. तुम्हें याद करती हूँ और तुम्हारी गंजी का पसीना सूंघ लेती हूँ…. देख आज फिर हो गयी मेरी आँखें नम ….. ओ मेरे चवन्नी कम … मेरा कुछ तो रखो भरम … अरे इन पैसों का क्या करूँ……?? बत्ती बनाऊं……? . और तेल में डाल के दिया जलाऊं… तुम बिन ज़िंदगी कटती नहीं … चहुं दिस छाई अंधियारी… जैसे कामन वेल्थ की तैयारी …तुम्हीं कहो तुम्हारी अमानत का कैसे हिसाब दूँ?? और सुबह शाम नेपथ्य से उठती सीटियों का क्या जवाब दूँ ? …. दिलो दिमाग में उठते हैं बलबले ,,, ओ मेरे जिगरजले …ओ मेरे बजरबट्टू … इंटरनेट के चट्टू …..जाओ जहाँ रहो आबाद रहो ,,, गाज़ियाबाद चाहे इलाहाबाद रहो ….. चिट्ठी करती हूँ बंद… जब याद आये तो एक पोस्ट मेरे नाम की सजा देना … वरना ट्विटर या बज़ पर बजा देना …बातें लिखते हो कितनी चीप … थोड़ा सोच को करियो डीप … वरना सबकी उलटी टीप खाओगे ….जहाँ तहां बजाये जाओगे …. कुछ भी हो तेरा यश हरदम अपनी जुबां पर सजाऊँगी …. और यही गाऊँगी … मुन्नी बदनाम हुई ………………………तेरे लिए ‘आपकी प्राण‘, प्यासी… अकेशोज्योतिर्कापाल=बिना केश और चमकते कपाल वाला… तिर्यकनेत्रद्वयी= तिरछी नज़र वाला …(भेंगा) Rate this:इसे शेयर करे:TwitterFacebookRedditपसंद करें लोड हो रहा है... Related