ये पब्लिक है ये सब जानती है

पिछले दिनों हुए घटना क्रमों पर एक सरसरी निगाह डालें तो सरकार का रवैया साफ़ नज़र आता है

HAZARE_1_652601fपिछले दिनों अन्ना ने जंतर मंतर पर भ्रष्टाचार के खिलाफ़ जिस जनयुद्ध का बिगुल अन्ना हजारे ने फूंका था, और जनता द्वारा अप्रत्याशित रूप से जिस तरह से अन्ना की मुहिम को सममर्थन प्राप्त हुआ था उससे सरकार हिल गयी थी और न चाहते हुए भी आश्वासन के तौर पर ही सही लेकिन जन लोकपाल विधेयक के लिए ड्राफ्टिंग कमिटी का गठन किया… इधर ड्राफ्टिंग कमिटी गठित तो हुई परन्तु उसके तुरंत बाद अचानक ड्राफ्ट कमिटी के मेम्बरों पर नए नए तमाम आरोप लगाए जाने लगे और  साक्ष्य उजागर करने का नाटक करते हुए ड्राफ्ट कमिटी के मेम्बरों को बदनाम करने का प्रयास किया जाने लगा.

baba-ramdevयह मुद्दा अभी अधर में ही था कि बाबा रामदेव ने भ्रष्टाचार और काले धन के विरुद्ध दूसरी लड़ाई का आगाज़ कर दिया. सरकार पहले से ही सकते में थी, जंतर मंतर पर उमड़े जनसैलाब देख पहले से ही डरी हुई थी. वो किसी भी तरीके से रामलीला मैदान को जंतर मंतर नहीं बनने देना चाह रही थी. रामदेव के अनशन के ऐलान के साथ ही तमाम सरकारी कोशिशें इस प्रयास में लग गयीं कि कैसे बाबा रामदेव के अनशन को रोका जा सके. इसी मंशा के तहत प्रधानमन्त्री और सोनियागांधी ने चिट्ठी लिखी, एयर पोर्ट पर चार कैबिनेट मन्त्री फुसलाने, बरगलाने अथवा धमकाने के लिए पहुँचे. बाबा अपनी शर्तों से किसी तरह डिगने वाले नहीं थे. सरकार द्वारा तथाकथित राष्ट्रभक्तों से निपटने का ज़िम्मा कपिल सिब्बल को दिया गया था. उसके बाद अन्ना हजारे के जंतर मंतर वाले फार्मूले के तहत आश्वासन  देने और फिर मामले को बहकाए रहने की नीति अपनाई गयी और पांच घंटे तक बाबा के साथ बंद कमरे में वार्ता चली. बंद कमरे में राजनीति के जितने खेल खेले गए होंगे वह तो बाबा या सिब्बल जानते होंगे, मगर बाबा की बातों से स्पष्ट था कि साम दाम दण्ड भेद जैसे सभी हथकण्डे अपनाए गए बाबा को अनशन पर बैठने से लेकिन स्पष्ट रूप से भ्रष्टाचार से निपटने के लिए कोई कदम नहीं उठाया गया और बाबा को आश्वासनों और वादों की चुसनी देते रहे.

आश्वासन, और दबाव की रणनीति अपनाते हुए बाबा और उनके सहयोगी बालकृष्ण को सरकार ने अपने जाल में फँसाया और एक सहमति पत्र  जल्दबाजी में लिखवा लिया गया. बाबा के एक सहयोगी के अनुसार अगर वह पत्र लिख कर नहीं दिया गया होता तो बाबा और बालकृष्ण को होटल में ही गिरफ्तार कर लिया जाता और जनता को उसी समय खदेड़ दिया जाता लेकिन होनी कुछ और थी… बाबा ने सहमति पत्र दिया और अनशन पर बैठ गए. इस बीच सरकार और बाबा के बीच परदे के पीछे लगातार वार्ता जारी रही. सरकार हर बात मानने का आश्वासन दे रही थी, लेकिन केवल आश्वासन पर बाबा मानने वाले नहीं थे क्योंकि लोकपाल का हश्र सब देख चुके थे.

अनशन पूरा एक दिन चला..यद्यपि वहाँ कल्बे ज़व्वाद रिज़वी, मदनी, आर्क बिशप और जैन गुरु आदि हर धर्म के लोग मौजूद थे, अन्ना ने भी अपना समर्थन बाबा को दे दिया था परन्तु पूर्वाग्रह से ग्रसित  सरकार ने साध्वी ऋतंभरा को देखते ही पूरे अनशन को आर एस एस द्वारा प्रायोजित और भाजपा द्वारा समर्थित होने का दावा कर दिया. शाम होते होते मंच से हो रही किरकिरी और अनशन पर बैठे अपार जन समूह ने सरकार के पेट में खलबली मचा दी… चौतरफ़ा उसके सभी प्रयास विफल होते देख काँग्रेस कोर कमिटी की बैठक में कुछ गुप्त निर्णय लिए गए.

Anna Hazare Fast 08-06-11 (68)सरकार की घबराहट बढती जा रही थी …उसने अपने अंतिम प्लान पर अमल करते हुए  रात साढ़े ग्यारह बजे दिन भर के भूखे प्यासे लगभग एक लाख सो रहे अनशनकारियों पर दिल्ली पुलिस और केन्द्रीय सुरक्षाबल आँसू गैस और लाठियाँ लेकर पिल पड़े और जो जहाँ जैसे मिला उसे खदेड़ा गया, बाबा रामदेव को मंच के पीछे से खींचतान कर पकड़ने के प्रयास में बाबा के कपड़े तक उतार लिए गए. आँसू गैस और घबराहट से बेहोश निर्वस्त्र पड़े बाबा को किसी तरह महिलाओं ने अपना कपड़ा पहनाया और बाहर निकाला जहाँ से पुलिस ने बाबा को पकड़ा और हरिद्वार के लिए तडीपार कर दिया. दूर दूर पूरे भारत से आये अनशनकारी  पूरा दिन दिल्ली की सड़कों पर भटकते रहे, जो जहाँ मिला पीटा गया…

सरकार ने बाबा को तो खदेड़ दिया लेकिन चिट्ठी को लेकर जहाँ बाबा बैकफुट पर आते नज़र आ रहे थे तमाम जनता की सहानुभूति बाबा के पक्ष में जाने लगी, लगभग हर राजनैतिक पार्टी ने इस कृत्य का विरोध किया. चारों तरफ थू थू होने लगी. लेकिन इस अफरातफरी में भ्रष्टाचार का मुद्दा फिर से कहीं गुम हो गया…

सिविल सोसाइटी द्वारा जब एक दिन के लिए कमिटी की बैठक का बहिष्कार किया गया तो कपिल सिब्बल की बाँछें खिल गयीं और ऐलान कर दिया कि हम कटिबद्ध हैं और अकेले ही(मनमाने ढंग से) लोकपाल बिल बनायेंगे और पेश कर देंगे.

उधर बाबा अनशन से उठने को तैयार नहीं हैं और हरिद्वार में अपने अनशन पर हैं इधर सरकार और उसकी सारी मशीनरी बाबा और बालकृष्ण के इतिहास वर्तमान को खोदने और खंगालने में लगी हुई है. एक तरफ दिग्विजय सिंह घूम घूम कर बाबा को गरियाने और कोसने में लगे हुए हैं तो दूसरी तरफ तमाम एजेंसियाँ बाबा और बालकृष्ण को बदनाम करने के लिए कोशिश में लगी हुई हैं. इस तरह कालेधन और भ्रष्टाचार का मुद्दा कहीं खोता हुआ दिख रहा है

Anna Hazare Fast 08-06-11 (11)अन्ना ने रामलीला मैदान में हुए सरकारी और पुलिसिया कहर के खिलाफ़ जंतर मंतर पर शांतिपूर्ण अनशन करना चाह रहे थे, लेकिन सरकार अब किसी की सुनने के मूड में नहीं थी, धरा 144 लगा कर जंतरमंतर को भी सील कर दिया. मजबूरन अन्ना को अपने अनशन को राजघाट ले जाना पड़ा. चार दिन पहले हुए पुलिसिया ताण्डव के बावज़ूद राजघाट पर अन्ना के समर्थन में दुबार एक बड़ा जनमानस इकठ्ठा हुआ और बता दिया कि अब यह मुद्दा और जनता की आवाज़ को दबाया नहीं जा सकता है. राजघाट पर भी जनता न पहुँचे इसके लिए पुलिस द्वारा पूरे प्रयास किये गए थे. लेकिन सरकार की सारी योजनाएं असफल होते हुए दिख रही हैं और जनता का विरोध और मुखर हो रहा है

अन्ना को राजघाट पर मिले व्यापक जन समर्थन के बाद सरकार की मुश्किलें और बढ़ी हैं… सरकार अपनी पोल खुलते देख अब इन लोगों की आवाज़ को दबाने और इनसे निपटने के लिए गैर लोकतांत्रिक तरीके अख्तियार करने लगी है. सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने एक एडवाइजरी भेज कर सभी चैनलों को अन्ना हजारे और बाबा रामदेव के कार्यक्रमों की कवरेज करने से मना कर दिया है. सरकारी धमकी के बाद चैनल भी पूँछ दबा लिए हैं.

तू डाल डाल मै पात पात की तर्ज़ पर आज भ्रष्टाचार और जनता के बीच जो जंग छिड़ गयी है उसमे सरकार तमाम मायावी चालों से जनता की आवाज़ को दबा देने और जज़्बे को कुचल देने के लिए कटिबद्ध दिखती है जबकि जनता है कि सार्थक अंजाम तक पहुंचाए बिना इस मुहिम से पीछे हटने को तैयार नहीं है..