भ्रष्टाचार के खिलाफ जनयुद्ध

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लेकिन होता भूडोल, बवंडर उठते हैं,
जनता जब कोपाकुल हो भृकुटि चढाती है;
दो राह, समय के रथ का घर्घर-नाद सुनो,
सिंहासन खाली करो कि जनता आती है।

P300111_13.25_[04]पूरे भारत मे लगभग साठ शहर… कोई राजनीतिक पार्टी के नेतृत्व के बिना…. आम आदमी के आह्वान पर…. आम आदमी का भ्रष्टाचार के खिलाफ जनयुद्ध….

30-01-2011, नयी दिल्ली के रामलीला मैदान मे शायद पहली बार बिना किसी राजनैतिक पार्टी के सहयोग अथवा आह्वान के बिना भ्रष्टाचार के विरुद्ध किरण बेदी,जस्टिस संतोष हेगड़े,प्रशांत भूषन,जे.एम .लिंगदोह,स्वामी अग्निवेश,अन्ना हजारे,आर्चविशप विन्सेंट एम. कोंसेसाओ तथा अरविन्द केजरीवाल सहित  तमाम  संगठनो, प्रबुद्धजनों, और आम इन्सानों को एक मंच पर अपार जनसमुदाय के रूप मे देख कर लगा कि आम नागरिकों का धैर्य टूट गया है…

जेएनयू और अन्य कालेजों की छात्राएं आज करोड़ो और अरबों के घोटाले सनसनीखेज खबर मात्र बन कर रह गए हैं… रोज़ नया घोटाला, रोज़ नई जांच… चारों तरफ भ्रष्टाचार व्याप्त है। आज जहां हर सरकारी दफ्तर मे हर रोज़ हर क्षण जनता के सम्मान का बलात्कार किया जाता है, रिश्वत मांगी जाती है, रिश्वत न देने पर गाली गलौच की जाती है, वहीं इन्हीं विभागों मे बैठे अधिकारियों, मंत्रियों और दलालों की साँठ गाँठ माफियाओं की जमातें फल फूल P300111_12.57_[01]रही हैं।  आज हम भ्रष्टाचार की शिकायत उसी विभाग के उच्च अधिकारियों से करते हैं जो उसी भ्रष्टाचार मे लिप्त हैं।  क्या हम यह मान लें कि आज सिस्टम इतना खोखला हो गया है कि उसे सुधारा जाना संभव नहीं है और चुपचाप जो हो रहा है उसे सहते रहें, या फिर यह सोच लें कि आज समय आ गया है जब आम इंसान आम नागरिक को अपनी लड़ाई खुद ही लड़नी पड़ेगी।

इससे अधिक माफिया राज का ज्वलंत उदाहरण क्या मिलेगा कि भ्रष्टाचार का विरोध करने पर अधिकारी  सोनवणे को ज़िंदा जला दिया जाता है…  बाद मे छापे भी पड़ते हैं और सैकड़ों तेल माफिया से जुड़े लोग पकड़े भी जाते हैं लेकिन उससे पहले सिस्टम के रखवाले कहाँ रहते हैं और क्या करते रहते हैं…कर्नाटक मे वेल्लारी मे खनन माफिया रेड्डी बंधुओ से  से वहाँ का शासन और प्रशासन घबराता है… यह एक प्रश्नचिन्ह है व्यवस्था पर। कार्यालयों मे काम करने वाले सामान्य कर्मचारी और पुलिस के सिपाही भ्रष्टाचार के नाम पर सबसे अधिक बदनाम किए जाते हैं, जब कि उच्च स्तरों पर भ्रष्टाचार का नंगा नाच होता है उसे जाँचों की आड़ मे छुपा दिया जाता है… कितने ऐसे घोटाले हैं पिछले दस सालों मे जिनमें जांच रिपोर्ट के आधार पर भ्रष्टाचारी को सजा दी गयी हो… राष्ट्र को हुए नुकसान की भरपाई की गयी हो… शायद एक भी उदाहरण खोजने से न मिले… चोरी की बात गले उतरती है लेकिन खुलेआम डकैती जैसी स्थिति आज की व्यवस्था पर सवाल खड़े करती है। यह स्थिति कमोबेश पूरे देश की है… किसी सरकार अथवा क्षेत्र मात्र की ही नहीं।

उच्च पदों पर बैठे हुए अफसर और राजनेताओं से माफियाओं की साँठ गाँठ दिन ब दिन उजागर होती रही है… अरबों खरबों की की काली कमाई विदेशी बैंकों मे भरी पड़ी है… जहां तहाँ विकास के नाम पर बहुमूल्य ज़मीनों को किसानों से छीन कर औने-पौने दामों पर कारपोरेट घरानों को दिये जा रहे हैं…निजीकरण के नाम पर महत्वपूर्ण विभागों को धनपशुओं का गुलाम बनाया जा रहा है…. घोटालों की तो कोई सीमा नहीं रह गयी है…एक से बड़े एक घोटाले करने की प्रतियोगिता हो रही हो जैसे… आखिर कब तक चलेगा ये सब….

नेतृत्व जब अपनी क्षमता खो दे तब जनता को इसकी बागडोर अपने हाथों मे लेनी ही होती है… हाँगकाँग मे 1970 के  दशक तक आज के भ्रष्टाचार के भारत से भी बदतर अवस्था में था जिससे आजिज़  आकर वहां के लोग सड़कों पर उतर आये और वहां (ICAC ) Independent Commission Against Corruption नामक स्वतंत्र संस्था का गठन हुआ और  एक साथ 180 में से 119 पुलिस अधिकारियों को नौकरी से निकाल दिया गया जिससे पूरी नौकरशाही में सन्देश गया की अब भ्रष्टाचार नहीं चलने वाला | नतीजा ये है की हांगकांग आज लगभग भ्रष्टाचार मुक्त देश है और ICAC पूरी दुनिया के लिए एक मिसाल बन चुका है….| आज मिस्र आदि देशों मे भी जनता शासन के खिलाफ एक जुट हो कर सड़कों पर है…

हद है ….हद है !!!

भ्रष्टाचार से निपटने के लिए सरकार द्वारा लाये जा रहे लोकपाल बिल भी पहले की जांच एजेंसियों जैसी लचर और सरकारी दखल से प्रभावित व्यवस्था  हैं जिसके आने से वर्तमान स्थिति मे कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है। आज ज़रूरी है एक व्यावहारिक, पारदर्शी और प्रभावशाली कानून की जो इन धनपशुओं और भ्रष्टाचारियों मे नकेल डाल  सके।

व्यवस्था से इतर एक व्यावहारिक और असरदार लोकपाल बिल की प्रस्तावना तैयार की गयी है  जिसके अंतर्गत केंद्र मे लोकपाल और राज्य मे लोकायुक्त सरकार के अधीन नहीं होंगे….. वर्तमान सरकार द्वारा लाई जा रही व्यवस्था और व्यावहारिक जन लोकपाल की व्यवस्थाओं के बीच का अंतर ऐसे समझा जा सकता है –

 

वर्तमान व्यवस्था    प्रस्तावित व्यवस्था
तमाम सबूतों के बाद भी कोई नेता या अफसर जेल नहीं जाता क्योकि एंटी-करप्शन ब्रांच (एसीबी) और सीबीआई सीधे सरकारों के अधीन आती हैं। किसी मामले मे जांच या मुकदमा शुरू करने से पहले इन्हें सरकार मे बैठे उन्हीं लोगों से इजाज़त लेनी पड़ती है जिनके खिलाफ जांच होती है

प्रस्तावित कानून के बाद केंद्र मे लोकपाल और राज्य मे लोकायुक्त सरकार के अधीन नहीं होंगे। ACB और सीबीआई का इनमे विलय कर दिया जाएगा। नेताओं या अफसरों के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामलों की जांच और मुकदमों के लिए सरकार की इजाज़्त की आवश्यकता नहीं होगी। जांच अधिकतम एक साल मे पूरी कर ली जाएगी। यानी भ्रष्ट आदमी को जेल जाने मे ज़्यादा से ज़्यादा दो साल लगेंगे

तमाम सबूतों के बावजूद भ्रष्ट अधिकारी सरकारी नौकरी पर बने रहते हैं। उन्हें नौकरी से हटाने का काम केंद्रीय सतर्कता आयोग का है जो केवल केंद्र सरकार को सलाह दे सकती है। किसी भ्रष्ट आला अफसर को नौकरी से निकालने की उसकी सलाह कभी नहीं मनी जाती

प्रस्तावित लोकपाल और लोकायुक्तों मे ताकत होगी की वे भ्रष्ट लोगों को उनके पदों से हटा सकें केंद्रीय सतर्कता आयोग और राज्यों के विजिलेन्स विभागों का इनमे विलय कर दिया जाएगा।

आज भ्रष्ट जजों के खिलाफ कोई एक्शन नहीं लिया जाता। क्योकि एक भ्रष्ट जज के खिलाफ केस दर्ज़ करने के लिए सीबीआई को प्रधान न्यायाधीश की इजाजत लेनी पड़ती है।

लोकपाल और लोकायुक्तों को किसी जज के खिलाफ जांच करने व मुकदमा चलाने के लिए किसी की इजाजत लेने की आवश्यकता नहीं होगी

आम आदमी कहाँ जाये? अगर आम आदमी भ्रष्टाचार उजागर करता है तो उसकी शिकायत कोई नहीं सुनता। उसे प्रताड़ित किया जाता है।

लोकपाल और लोकायुक्त किसी की शिकायत को खुली सुनवाई किए बिना खारिज नहीं कर सकेंगे आयोग भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज़ उठाने वाले लोगों की सुरक्षा भी सुनिश्चित करेंगे
सीबीआई और विजिलेन्स विभागों के कामकाज गोपनीय रखे जाते हैं इसी कारण इनके अंदर भ्रष्टाचार व्याप्त है लोकपाल और लोलायुक्तों का कामकाज पूरी तरह पारदर्शी होगा किसी भी मामले की जांच के बाद सारे रिकार्ड जनता को उपलब्ध कराने होंगे। किसी भी कर्मचारी के खिलाफ शिकायत आने पर जांच और जुर्माना लगाने का काम अधिकतम दो माह मे पूरा करना होगा
कमजोर भ्रष्ट और राजनीति से प्रेरित लोग एंटीकरप्शन विभागों के मुखिया बनते हैं लोकपाल और लोकायुक्तों की नियुक्ति मे नेताओं की कोई भूमिका नहीं होगी। इनकी नियुक्ति पारदर्शी तरीके और जनता की भागीदारी से होगी।
सरकारी दफ्तरों मे लोगों को बेइज्जती झेलनी पड़ती है। उनसे रिश्वत मांगी जाती है। लोग ज़्यादा से ज़्यादा उच्च अधिकारियों से शिकायत कर सकते हैं लेकिन वे भी कुछ नहीं करते क्योकि उन्हें भी इसका हिस्सा मिलता है लोकपाल और लोकायुक्त किसी व्यक्ति का तय समय सीमा मे किसी भी विभाग मे कार्य न होने पर दोषी अधिकारियों पर 250/- प्रतिदिन के हिसाब से जुर्माना लगा सकेंगे जो शिकायतकरता को मुवाबजे के रूप मे मिलेंगे।
कानूनन भ्रष्ट व्यक्ति के पकड़े जाने पर भी उससे रिश्वतख़ोरी से कमाया पैसा वापस लेने का कोई प्राविधान नहीं है। भ्रष्टाचार से सरकार को हुई हानि का आंकलन कर दोषियों से वसूला जाएगा
भ्रष्टाचार के मामले मे 6 माह से लेकर 7 साल की जेल का प्राविधान है कम से कम पाँच साल से लेकर आजीवन कारावास तक की सजा होनी चाहिए।

 

क्या आप तैयार हैं भ्रष्टाचार के विरुद्ध इस जनयुद्ध मे शामिल होने के लिए … या सिर्फ सरकारों और व्यवस्थाओं को कोसने भर से काम चल जाने वाला है…. ???  अगर तैयार हैं तो इस विषय पर लिखें… बोलें… और ठान लें कि बस…. बहुत हो गया ….

enough is enough !!!

संपर्क करें… भ्रष्टाचार के खिलाफ जनयुद्ध…

ए-119 कौशांबी, गाजियाबाद- 201010, उ0 प्र0

फोन- 9717460029

email- indiaagainstcorruption.2010@gmail.com    

www.indiaagainstcorruption.org 

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