प्यार करना टूट कर … फिर टूट जाना
प्यार का अञ्जाम ही ये है पुराना
तैरने की कोशिशें बेकार हैं सब …
पार पाना है तो गहरे डूब जाना
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पतंगों ने ज्योत्सना पर होम होने के लिए
पत्थरों ने दिल लगाया मोम होने के लिए
प्रेम का फलसफा थोड़ा इस तरह भी समझिये
बीज मिट्टी में मिला तो व्योम होने के लिए
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टूट कर चाहने वाले भी अक्सर टूट जाते हैं
बहुत लंबे सफर मे कुछ मुसाफ़िर छूट जाते हैं
ये रिश्ते पकते पकते पकते हैं चट्टान बनते हैं
मगर कच्चे घड़े धक्का लगे तो टूट जाते हैं
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सनम तरसा हुआ आए तो कोई बात होती है
के बारिश रेत पर आए तो कोई बात होती है
कोई प्यासा ही समझेगा के पानी की तड़प क्या है
बिछोहे पर मिलन आए तो कोई बात होती है
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जिसमे आँसू का नमक न हो वो हँसी कैसी
वक्त पर काम न आए तो दोस्ती कैसी
एक ठोकर मे चटख जाए वो रिश्ता कैसा
होश जिसमे बने रहें वो मयकशी कैसी
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कब तलक भेड़ें बचेंगी भेड़ियों के देश मे
बाज़ मंडराने लगे हैं मुर्गियों के वेश मे
कौन बाँधे घण्टियाँ अब बिल्लियों को बोलिए
हर तरफ गद्दार फैले पड़े हैं परिवेश मे
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अँधेरों ने चाल खेली छंट गयी हैं आंधियाँ
क्या हुआ फिर से दलों मे बंट गयी हैं आंधियाँ
कुटिल अट्टाहास करता आज मरघट का धुआँ
दिग्भ्रमित हो टुकड़ियों मे कट गयी हैं आंधियाँ
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चुक गया है आँख का पानी कि पत्थर हो गया
हृदय का चंचल समन्दर क्यों मरुस्थल हो गया
आन भूली, धर्म भूला, साध्य केवल धन रहा
विश्व गुरु भारत कुमारों तुम्हें ये क्या हो गया
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आईना ज़िंदगी को दिखाने की देर है
अपनी खुदी पहचान मे आने की देर है
सोए पड़े समंदरों मे आग बहुत है
चिंगारियों को राह दिखाने की देर है
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