जय हिंद !

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गणतंत्र दिवस पर ब्लॉग परिवार को मंगल कामनाएँ !

एक बहुत बड़ा पेड़ था जिसपर हज़ारों पक्षी रोज़ अपना बसेरा करते थे. किसी दिन उस पेड़ में आग लग गयी…तथापि पक्षियों ने उसी पेड़ पर रहते हुए जल मरने का निर्णय लिय…. कवि यह सब देख रहा है …. पक्षियों से पूछता है–

आग लगी इस वृक्ष में जरन लगे सब पात

तुम पंछी क्यों जरत हौ…. जब पंख तुम्हारे पास

जलते जलते पक्षियों ने अपनी भावनाओं को कुछ इस तरह से व्यक्त किया –

फल खाए इस वृक्ष के गंदे कीन्हें पात….

अब फ़र्ज़ हमारा यही है कि जले इसी के साथ

भारत वर्ष कभी बलिदानियों और वीरों से खाली नहीं रहा है… सुख समृद्धि और आज़ादी  ने हमारी प्राथमिकताएं बदल दी हैं. हम राष्ट्र के प्रति अपने उत्तरदायित्व को भूल जाते हैं. विदेशी आक्रान्ताओं और अपने घर के भेदियों से इस देश का सीना बार बार छलनी किया गया. इसकी अस्मिता पर बार बार दाग लगाने की कोशिश की गयी किन्तु भारत सदैव अक्षुण्ण रहा –

सोने की चिड़िया  को जाने कितने ही लूट गए होंगे

जब जब टूटी है डाल नए सौ अंकुर फूट गए होंगे

पथ कसम तुझे  दुर्गमता अपनी कभी न कम  होने देना

मेरे पैरों के शोणित से अपना वक्षस्थल धो लेना

थक कर गिरना, गिर कर उठना ये नियति भले हो सकती है

पर रुकना नहीं भले  पग में काँटे सौ टूट गए होंगे

हो सजग पहरुओ भारत के पग भर यह भूमि न बंट जाए

यह सर काँधे पर रहे कि चाहे  लड़ते लड़ते  कट जाए

हम कभी न थक कर बैठेंगे है लक्ष्य हमारी आँखों में

हम भी उस राह चलेंगे जिस पर वीर सपूत गए होंगे

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—-पदम सिंह